Who we?

19 अगस्त सन 2000 मे इस मंदिर का निर्माण करने का निर्णय लिया गया. इस मंदिर का निर्माण करने का श्रेय श्री महंत मनसापूरी जी महाराज जी को जाता है. श्री महंत जी भ्रमण के लिए निकले  वे भ्रमण करते हुए जब  यहा पर पहुचे तो उन्होने  सुना की यहाँ पर  बहुत ही अनहोनी घटनाए और दुर्घटनाए होती है और ये बढ़ते ही जा रहे है, तब महंत जी ने  यहा मा महाकाली के मंदिर की स्थापना का विचार किया. उस समय श्री महंत जी के पास केवल 160 रुपए ही थे. उन्होने मन मे निर्णय कर लिया था की यहा की समस्या का समाधान वे अवश्य करेंगे.उन्होने कई मिस्त्री और मजदूरो से बात की तो उन्होने इसका खर्च लाखो रुपय बताया. तब महंत जी ने चंदा एकट्ठा करना शुरू किया. यात्री आते और अपनी श्रधा से परसाद लेकर चंदा देकर जाते. श्री महंत जी नागा सन्यासी धुना ईस्तमाल करते है. अपनी लगन के साथ उन्होने  7 नवंबर 2000. को पहला मा महाकाली का जागरण करवाया और अगली सुबह 8 नवंबर 2000. को सुबह भूमि पूजन करने के बाद मंदिर की नीव रखी. अपनी श्रधा और सभी की मेहनत से और चंदे की सहायता से इसका निर्माण आरंभ करवाया.  18 अगस्त 2002 मे इस मंदिर का काम पूरा हो गया. इसमे कुल खर्च 4 से 5 करोड़ रु.लगे . ये मंदिर 1 एकड  मे बनाया गया है. मंदिर बन जाने के बाद से ही एक्सीडेंट होने कम हो गये, श्रधालुओ की श्रधा और बढ़ गयी. यह सब केवल श्री महंत मनसापूरी महाराज जी की मेहनत और विश्वास से हुआ है. वे हर रोज सुबह 3 बजे से 9 बजे तक पूजन करते है.  मंदिर का रोजाना खर्च 25000 रु. है.  मंदिर बन जाने के अगले दिन 19 अगस्त. को प्राण प्रतिष्ठा  की पूजा के बाद सभी के लिए प्रसाद के रूप मे भंडारे का आयोजन हुआ. इससे पहले महंत जी नैनीताल मे नदी के किनारे ही पूजन करते थे. श्री महाकाली माता मंदिर का निर्माण इनकी मेहनत और सोसाइटी की सहायता से पूर्ण हुआ. तब से आज तक इस मंदिर मे हर दूसरे महीने शनिवार को माता का भंडारा होता है और नवरात्रो मे अष्टमी का जागरण और नवमी को भंडारा होता है. इस मंदिर मे जो भी चढ़ावा आता है वो गौशाला मे और ग़रीब बच्चो की सहायता  और शिक्षा के लिए दान दिया  जाता है. मंदिर मे मा महाकाली का अखंड धुना अखंड ज्योति हमेशा  सुचारू रूप से प्रज्वलित रहती है. मा के आशीर्वाद से यहा आने से सभी के दु:खो का समाधान होता है. आज के समय मे यह मंदिर प्रसिद्ध माना जाता है. यह मा महाकाली का आशीर्वाद और श्री महंत  मनसापूरी जी महाराज जी की श्रधा का परिणाम है. सोनीपत मे स्थित बड़ी गाँव मे बने इस मंदिर की बहुत ही मानता है.